लिखने के लिए अच्छे विचार कैसे लाए....
अगर कोई कहानी या लेख लिखना हो तो अच्छे वाले
विचार हमेशा रात में ही आते है। कभी दिन में एकदम होश
में रहने पर ऐसे विचार आते ही नही है। या फिर जब शरीर
और दिमाग एनर्जी से पूरा भरा हो तब तो पक्का है की ऐसा
कोई अच्छा thought नही आयेगा।
लेकिन जैसे ही नींद आती है। या फिर दिमाग से थकान
होती है। ऐसे अच्छे अच्छे विचार आते है की पूछो ही मत।
कभी कभी तो किसी समस्या का बढ़िया हल भी मिल जाता
है। लेकिन उस वक्त समस्या ये होती है की उसे लिखे कौन?
इतनी थकान हो रही होती है और साथ में इतनी अच्छी
इतनी प्यारी इतनी गहरी नींद आ रही होती है।
ये भी किया जा सकता है की थोड़ा सो लेते है फिर उठ
के लिखेगे। लेकिन इन विचारो का जागने से न जाने क्या
दुश्मनी है। सो के उठने के बाद तो जैसे ये सब अपना बोरिया
बिस्तर लेके कही दूर चले जाते है। कितना भी पास बुलाओ
लेकिन आते नही है। मतलब याद नही आते है।
एक दूसरी अवस्था भी है इन विचारो के आने की। वो है
आधी नींद में। मतलब लगता ऐसा है की हम जाग रहे है।
सब कुछ देख ,सुन,महसूस कर सकते है। लेकिन अपने
विचारो को लिख नही सकते। क्योंकि असल में तो हम
कच्ची नींद में होते है। या अर्ध सोई हुई अवस्था में। मेरे साथ
तो ये हर दिन होता है। हर दिन मतलब रोज का है ये विचारो
का नखरा।
जब मैं एक्टिव मूड में रहती हू तब कोई विचार आता नही
है और जब आता है तब सिर्फ मेरा दिमाग चल रहा होता है।
बाकी शरीर तो जैसे लुंज पुंज हो गया हो।
पता नही कैसे कुछ लेखक अपने अवचेतन मन की बातो
को याद रख पाते है और फिर उसे लिख भी पाते है।
विचारो के आने की तीसरी अवस्था है रात का दूसरा
पहर। यानी की 1 बजे के बाद से लेकर सुबह 4 बजे तक।
पता नही कैसे ये जादू होता है। लेकिन इस वक्त इतने अच्छे
अच्छे विचार, कहानियां और कविताएं याद आती है ।की
एक बार तो खुद को भी अपने विचारो पर शक होने लगता
है। लेकिन इस समय भी एक समस्या है और वो ये की ये
समय सोने का होता है । अब अगर इस समय कोई जागेगा
और अपने विचारो को या कहानियों को लिखेगा तो फिर
सोएगा कब?
मै ऐसा मानती हू की लिखने के लिए शांति की नही
बल्कि विचारो की न टूटने वाली श्रृंखला की जरूरत होती
है। अगर कोई विचार लगातार मन में चल रहे हो तो कितना
भी शोर शराबा हो लिखने वाला लेखक उसे लिख ही लेता
है।
और ये सब कुछ मैंने अपने बारे में ही लिखा है क्योंकि
हर लेख लिखने वाले का आइना होता है। और जिसके जैसे
विचार होते है। जैसी सोच होती है। जैसे जीवन का अनुभव
होता है। वो वैसा ही लिखता है।
कुछ और भी ऐसी अवस्थाओं के बारे में बताती हूं जब
अच्छे विचार तो आते है लेकिन उस समय हम उसे लिख
नही सकते। जैसे नहाते वक्त। मुझे तो कभी कभी ऐसा
लगता है जैसे शरीर पर पानी डालते ही शरीर की मैल के
साथ साथ दिमाग पर पड़ी मैल भी धूल जाती है। और एकदम से
अच्छे अच्छे विचार , कहानियां और कविताएं याद
आने लगती है।
लेख by दिव्यांजली वर्मा
अयोध्या, उत्तर प्रदेश
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