आत्महत्या कोई हल नही


आत्महत्या करने से पहले कोई ये भी नही सोचता की क्या गुजरेगी उस मां पर जिसने पत्थर से पहाड़ तक पूजे एक औलाद के लिए फिर नौ महीने उसे कोख में पाला। कितना ही दर्द सह कर भी कितनी खुश थी वो मां की भगवान ने उसकी कोख भर दी।


   आत्महत्या करने से पहले कोई ये भी नही सोचता की क्या गुजरेगी उस बाप पर जिसने दिन रात मेहनत करके दो पैसे कमाए जिससे वो अपनी औलाद को उसका पसंदीदा खिलौना दिला सके। उसके सारे सपने सजा सके।


   ऐसा लगता है की जैसे जैसे विज्ञान ने तरक्की की है। वैसे वैसे इंसान पहले से ज्यादा अवसाद ग्रस्त होता चला गया है। लोग खुद की जान ऐसे ले लेते है जैसे कीड़े मकौडे मारता हो कोई। और ये सब की वजह है अज्ञानता। मै इसे अशिक्षा नही कहूंगी। क्योंकि शिक्षित लोगो में अधिक आत्महत्या की प्रवृति पाई जाती है। 


   अधिक नंबर लाने का दबाव । घर वालो का दबाव। भविष्य में अच्छी नौकरी का दबाव। ये सब चीजें अगर नही मिलती है तो इंसान को लगता है की शायद उसकी जिंदगी अब बेकार है । और जीने के लिए अब कुछ भी नही बचा है। न अब वो समाज में अपना मुंह दिखा सकता है। न वो एक इज्जतदार जिंदगी जी सकता है।इ फिर उसे इन सब से बचने का एक ही रास्ता नजर आता है वो है आत्महत्या। 


   दूसरी तरफ प्यार में पड़े आज कल के नवयुवक और नवयुवतियां ,जिन्हे लगता है की उनका बाबू सोना ही सब कुछ है। अगर वो नही मिला तो शायद उनका जीना भी मुश्किल हो जायेगा या वो जी ही नहीं पाएंगे। कुछ दूसरे जो प्यार में धोखा खाए हुए है और उन्हें लगता है की उनका दर्द हो दुनिया का सबसे बड़ा दर्द है और इससे बचने का एकमात्र तरीका है आत्महत्या।


   लेकिन क्या सच में ऐसा है। अगर किसी ने गरुण पुराण पढ़ा होगा और अध्यात्म में विस्वास रखता होगा तो उसे ये बहुत अच्छे से पता होगा की आत्महत्या करने से पहले इतना दुख दर्द नही होता जितना की आत्महत्या करने के बाद होता है। हमारी आत्मा इसी मृत्युलोक में बंध के रह जाती है। उसे भूख भी लगती है। प्यास भी लगती है। लेकिन उसकी ये भूख प्यास मिट नही पाती जिस वजह से उसे बहुत तकलीफ होती है। वो बार बार मरने की कोशिश करती है लेकिन आत्मा तो मर भी नही सकती। कई बार वो कुछ लोगो के शरीर पर कब्जा करके ठीक उसी तरह मरने की कोशिश करती है लेकिन तब भी उसे मुक्ति नही मिल पाती है। 


   जीवित इंसान तो फिर भी एक बार अपनी पूरी जिंदगी जी के फिर समय पर मृत्यु पाकर मुक्त हो जाता है लेकिन आत्महत्या करने वालो की तो बहुत बुरी दुर्गति होती है। इसलिए जब भी जिंदगी में ऐसा लगे की अब सब खत्म हो गया है या फिर अवसाद और दर्द हद से ज्यादा बढ़ जाए ।इतना की मौत का दर्द भी उसके आगे कम लगे तो एसे में आत्महत्या करने से पहले एक बार अध्यात्म जरूर ट्राई करना। या फिर आपके कोई इष्ट देवी या देवता को जरूर याद करना। 


   हमने हर क्षेत्र में तरक्की तो कर ली ।लेकिन अध्यात्म को भूलते चले गए। इसकी ताकत ,इसके महत्व को भूलते चले गए। जबकि सुखी जीवन का तो आधार ही आध्यात्म है। अध्यात्म में उन्नति करके मन जितना आनंदित होता है उतना तो शायद कही नही होता है। 



स्वरचित लेख 

दिव्यांजली वर्मा


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