84 लाख जन्मों का रहस्य

 एक आत्मा को मनुष्य का शरीर प्राप्त करने के लिए 84 लाख योनियों से होकर गुजरना पड़ता है। अर्थात उसे मनुष्य योनि में जन्म लेने से पहले 84 लाख योनियों में जन्म लेना पड़ता है। फिर उसके कर्मो के आधार पर उसे मनुष्य योनी में जन्म मिलता है। अर्थात यदि उसके कर्म अच्छे है तो ही उसे मनुष्य योनि प्राप्त होगी और फिर वो इस योनी में भी अपने अच्छे कर्मो के आधार पर बैकुंठ धाम चला जायेगा या फिर अपने बुरे कर्मो के आधार पर दुबारा जन्म मरण चक्र में फस जायेगा। 


    

    पद्म पुराण के मुताबिक 84 लाख योनियों का अर्थ सृष्टि में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के जीव जंतु है। पुराण में बताया गया है की पानी के जीव यानी जलचर नौ लाख, पेड़ पौधे 20 लाख, कीड़े मकोड़े 11 लाख, पक्षी 10 लाख, पशु 30 लाख और देवता - दैत्य - मानव की चार लाख योनियां है। ये सब मिलाकर कुल 84 लाख योनियां बनती है। 



    अब मुझे समझ ये नही आता की मानव योनी में जन्म लेना ही श्रेष्ठ क्यों है? 🤔जबकि देवता तो मानव से भी श्रेष्ठ है। बल्कि देवता तो स्वर्गलोक में रहते है। जहा हर तरह की सुख सुविधा है। और वो कभी भी भगवान के साक्षात दर्शन कर सकते है। पौराणिक कथाओं में तो साफ साफ लिखा है की असुरों से बचाव के लिए देवता साक्षात भगवान के पास जाते थे उनसे मदद मांगने। 


इसके बहुत से उदाहरण हम सबके सामने है। जैसे अमृत के वितरण के लिए देवता भगवान के पास गए थे। शिव जी को भस्मासुर से बचाने के लिए देवता भगवान के पास गए थे। महिषासुर के अत्याचार से बचने के लिए देवता भगवान से मदद मांगने गए थे। जब देवता साक्षात भगवान के दर्शन करने में सक्षम है तो फिर मानव योनी श्रेष्ठ कैसे हुई?🤔



    दूसरी बात ये समझ से परे है की 84 लाख योनियों में जन्म एक ही युग में मिलता है या अलग अलग युग में?🤔

देवता और राक्षस योनि तो कलयुग में है नही। डायनासोर भी धरती से पहले ही विलुप्त हो चुके है। और भी बहुत से जानवर और पक्षी लगभग विलुप्त हो गए है। तो ये 84 लाख जन्म कितने युग में पूरा होता है?🤔



    एक इंसान के सारे सवालों का जवाब ग्रंथो और पुराणों में लिखा है। लेकिन कुछ ग्रंथो के नष्ट हो जाने के कारण प्रत्येक सवाल का जवाब जानना मुश्किल है। ऐसे में एक आखिरी उपाय यही है की अपनी अंतरात्मा से जुड़ा जाए। उससे बात करने के कोशिश की जाए। क्योंकि ये अंतरात्मा हर युग में थी और हर तरह के शरीर में जन्म ले चुकी है तो उसे सब कुछ पता है।



   देवता - दैत्य - मानव की चार लाख योनियां है। ये भी बहुत बड़ी पहेली है। कलयुग में तो केवल मानव ही बचा है। और उसकी भी तीन योनियों के जन्म का ही पता है - एक पुरुष योनि, दूसरा स्त्री योनि, तीसरा अर्धनारीश्वर योनि। 


  

     मैने अभी सारे ग्रंथो को नही पढ़ा लेकिन जितना पढ़ा है उसके हिसाब से मै ऐसा सोचती हूं की किसी भी योनी में मिला जन्म श्रेष्ठ नही है। बल्कि कर्म श्रेष्ठ है। 

देवता इंद्र अपने कर्मो की वजह से ही घमंडी कहे जाते थे। और प्रहलाद और विभीषण जैसे भक्त राक्षस कुल में जान लेने के बाद भी अपने कर्मो की वजह से अच्छे माने जाते है।



     कोई आत्मा मनुष्य शरीर पाकर कितने ही अच्छे कर्म क्यों न कर ले। 84 लाख योनियों के जन्म चक्र से नहीं बच सकती है। और 84 लाख योनियों में मिलने वाला जन्म भी चारो युग में जन्म लेने के बाद ही पूरा होता है। 


    

    यानी ये सत युग से शुरू होता है और कलयुग तक चलता है। इसी में अलग अलग युग में जिस तरह के जीव और मनुष्यो की प्रधानता होती है उसी में जन्म मरण का चक्र पूरा होता रहता है। 



लेख by Divyanjli verma 

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